पॉजिटिव एटिट्यूड वाले जीते हैं ज्यादा

उम्मीद को लेकर एक पुरानी कहावत है, जब तक सांस तब तक आस। लेकिन फिलहाल वैज्ञानिकों के सामने यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आशा से जीवन स्वस्थ और लंबा होता है या फिर स्वस्थ और लंबे जीवन जीने वाले आशावादी हो जाते हैं। अभी तक की तमाम स्टडी बताती हैं कि अति आशावादी लोगों की मृत्यु-दर काफी कम होती है। सकारात्मक सोच रखने वाले बाईपास सर्जरी के मरीजों में से सिर्फ आधे लोगों को फिर से अस्पताल जाने की जरूरत पड़ी। आशावादी नजरिया रखने वाले लोगों का ब्लड प्रेशर भी सामान्य रहता है। दूसरी ओर, निराशावादी लोगों में दिल की बीमारियां का खतरा भी दोगुना होता है। इन सब बातों पर सोचने के बाद वैज्ञानिकों ने लोगों की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर इस सवाल को हल करने की कोशिश की। इस कोशिश के बाद उन्होंने पाया कि बीमारी भी सकारात्मक लोगों के नजरिए को निराशावादी नहीं बना पाई। मेन्स हेल्थ वॉच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने पाया कि तमाम बीमारियों से ग्रस्त लेकिन पॉजिटिव एटिट्यूड रखने वाले बुजुगोंर् का मानना था कि उनका बुढ़ापा ठीक से कट रहा है। एक दूसरी स्टडी में पाया गया कि उम्मीद भरे नजरिए से दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय हो जाता है जो डिप्रेशन के दौरान गड़बड़ी करने लगता है। लेकिन इसके बावजूद यह सवाल फिर भी बना हुआ है कि आशावाद या सकारात्मक सोच हमें किस तरह फायदा पहुंचाती है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पॉजिटिव एटिट्यूड वाले लोग ज्यादा हेल्दी लाइफस्टाइल, बेहतर सामाजिक संबंध, स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल की वजह से लंबी उम्र जीते हैं। इसके अलावा इनमें स्ट्रेस हॉर्मोन भी कम बनते हैं। मुमकिन है कि इसमें जीन्स का भी कुछ योगदान हो। फिलहाल, वैज्ञानिक एक बात पर सहमत हैं कि इस विषय पर अभी और रिसर्च की जरूरत है।

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