मां-बेटी ने की एवरेस्ट फतह

नई दिल्ली , 26 मई। पहली बार किसी मां-बेटी ने एक साथ दुनिया के सर्वोच्च पहाड़ी चोटी माउंट एवरेस्ट पर झंडा फहराया है। पौ फटते ही ऑस्ट्रेलिया की दो जांबाज महिलाएं माउंट एवरेस्ट को चूमने के लिए अपने अंतिम पड़ाव से निकल पड़ीं। उस समय तापमान -30 डिग्री से भी नीचे था। कड़ाके की ठंड से शरीर में कंपकंपी बढ़ रही थी। इसके साथ ही एक 76 वर्षीय वृद्ध रविवार को विश्व की सबसे ऊँचे पर्वत शिखर पर सफलता पूर्वक चढ़ाई करने वाले विश्व के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति बन गए। ऑक्सीजन कम मिलने के कारण सांस फूल रही थी। कई कठिनाइयों से हौसले पस्त हो रहे थे, लेकिन लक्ष्य बेहद करीब था। हौसले को बढ़ाने के लिए सूर्य की स्वर्णिम किरणें जैसे-जैसे आगे बढ़ीं वैसे-वैसे लक्ष्य भी करीब आता गया। शनिवार को सुबह नौ बजकर पांच मिनट पर 8848 मीटर की ऊंचाई पर कदम रखते ही रेडियो से टीम के पास एक महिला की बुलंद आवाज आई,' मैं दुनिया की सर्वोच्च चोटी पर पहुंच गई हूं'। आस्ट्रेलिया के सिडनी की कारोबारी शेरिल बार्ट और उसकी बेटी व मेडिकल छात्रा निक्की जैसे ही नेपाल, तिब्बत और चीन की सीमा पर स्थित माउंट एवरेस्ट पहुंचीं, वैसे ही उनकी सारी कठिनाइयां काफूर हो गईं। उधर, 76 वर्षीय वृद्ध मीन बहादुर शेरचान ने अपने चार नेपाली साथियों के साथ एवरेस्ट पर पहुंच कर िवजय पताका फहराई।नेपाली पर्यटन मंत्रालय के अधिकारी रमेश छेत्री ने बताया कि मीन बहादुर की सेहत एकदम अच्छी है तथा उसने नीचे उतरना शुरू कर दिया है। मीन बहादुर ने जापान के 71 वर्षीय पर्वतारोही कात्सुसुके याना गिसावा के इस रिकॉर्ड को तोड़ा है। याना गिसावा ने पिछले वर्ष माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी।एवरेस्ट की सरजमीं को पहले निक्की ने चूमा और फिर 25 मिनट बाद में उसकी मां भी वहां पहुंचीं। वहां पहुंचकर दोनों ने कई रोमांचित दृश्य अपने कैमरे में कैद किए। दोनों को लक्ष्य मिलते ही खुशी का ठिकाना नहीं था। टीम के पास शेरिल बार्ट की आवाज आई, 'सूर्योदय अभी-अभी हुआ है, सूर्य की ऐसी स्वर्णिम आभा आज तक देखने को नहीं मिली'। निक्की और शेरिल का कहना है कि अधिक ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम मिलने के कारण कठिनाई अधिक हुई। चढ़ाई के अंतिम चरण में करीब नौ किलोमीटर के रास्ते पर खराब मौसम और भूस्खलन के कारण सफर बेहद जोखिम भरा था। अत्यधिक ऊंचाई पर दस्त और नाक से खून बहने की तकलीफ ने भी परेशान किया। आधार शिविर लौटते ही बर्ट ने अपने ब्लॉग पर एवरेस्ट के अनुभव लिखे। न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने 29 मई, 1953 को पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता हासिल की थी। तब उतनी तकनीकी सुविधाएं नहीं थीं अब जमाना हाई टेक हो चुका है। वैसे यह महीना पर्वतारोहण का है। एक पर्वतारोही पर करीब 25000 डॉलर खर्च आता है। नेपाल सरकार ने इस महीने लगभग 200 पर्वतारोहियों को चोटी पर चढ़ने की इजाजत दी थी। उनमें से इन दो महिलाओं ने एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचकर रिकार्ड बनाया है।

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