रामचरित मानस के चमत्कारिक दोहे - भाग 1

विद्या प्राप्ति के लिए
गुरू गृह गए पढ़न रघुराई। अल्प काल विद्या सब आई।।
यात्रा की सफलता के लिए
प्रविसी नगर कीजै सब काजा। ह्रदय राखि कोसलपुर राजा।।
झगड़े में विजय प्राप्ति के लिए
कृपादृष्‍टि करि वृष्‍टि प्रभु अभय किए सुरवृन्द।
भालु कोल सब हरषे जय सुखधाम मुकुंद ।।
ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए
लगे सवारन सकल सुर वाहन विविध विमान। होई सगुन मंगल सुखद क‍रहि अप्सरा गान।।
दरिद्रता मिटाने के लिए
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।
जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
संकट नाश के लिए
दिन दयाल विरूद् संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।
जीविका प्राप्ति के लिए
विस्व भरण पोषण कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।
सभी प्रकार की विपत्ति नाश के लिए
राजीव नयन धरे धनु सायक। भगत विपत्ति भंजक सुखदायक।।
विघ्न निवारण के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही। राम सुकृपा बिलोकहि जेही।।
आकर्षण के लिए
जेहि के जेहि प‍र सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।।
परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए
जेहि पर कृपा करहि जनु जा‍नी। कवि उर अजिर नचावहि बानी।।
मोरि सुधारिहि सो सब भाँति। जासु कृपा नहि कृपा अघाति।।

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